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बस्ते का बोझ

अंजन ...कुछ दिल से
अंजन ...कुछ दिल से
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पांच वर्ष का रोहन रोता हुआ, अनमना सा,पीठ में भारी बस्ता लिए, थोडा झुका हुआ, मम्मी के साथ ,स्कूल जाने के लिए रिक्शे वाले का इंतजार कर रहा था और शायद मन में ये कहता, “नहीं मम्मी… मुझे स्कूल नहीं जाना… मेरे बस्ते का बोझ कुछ कम करो” पर उसे तो रोज स्कूल जाना होता ही था …
थोड़ी देर में रिक्शा वाला भी आ गया जो अपने रिक्शे में क्षमता से ज्यादा बच्चे पहले से ही बिठा कर लाता और यहाँ से रोहन को ले जाता। इस बात को रोज एक चाय वाला देखता और रिक्शे वाले को देख परेशान हो जाता…
एक दिन चाय वाले ने रिक्शे वाले से पूछा की, ” तुम रोज अपनी क्षमता से ज्यादा बच्चे रिक्शे में ले जाते हो, क्यों अपनी जवानी वक्त से पहले ख़राब कर रहे हो ?”
रिक्शे वाला कुछ नहीं बोल मुस्कुराया और चल दिया…
फिर वही रोज रोहन का रोना और रिक्शा वाला आता जाता रहा …
आखिर एक दिन चाय वाले ने जबरजस्ती करके रिक्शे वाले से फिर वही सवाल कर दिया,
“इतना बोझ क्यों उठाते हो?”
इस बात को सुन रिक्शे वाले ने लम्बी आह भरी और जवाब दिया, …
“जब पांच साल का बच्चा लगभग दस किलो का वजन रोज उठाता है, तो मै इनका वजन क्यों नहीं उठा सकता, ये तो किताबो के चाबुक के बीच अपना बचपन गवां रहे है, मै तो सिर्फ आधी जवानी ही गवाऊंगा”

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